भारत एक बार फिर आंतरिक सुरक्षा के सबसे बड़े सवालों के सामने खड़ा है। जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया है। न केवल 26 निर्दोष लोगों की जान गई, बल्कि इस हमले ने यह भी साफ कर दिया कि आतंकवाद अब भी भारत के लिए सबसे बड़ा खतरा बना हुआ है। यह हमला सिर्फ एक हमला नहीं था—यह एक सोच पर हमला था, एक धर्म के नाम पर विभाजन की कोशिश थी, और मानवता पर एक गहरा धब्बा था।
जैसे ही हमले की खबर फैली, देशभर में गुस्से की लहर दौड़ गई। सरकार पर दबाव बढ़ने लगा कि वह अब महज़ निंदा करने से आगे बढ़कर ठोस कार्रवाई करे। राजनीतिक गलियारों में भी खलबली मच गई—हर पार्टी ने इस घटना को अपने-अपने नजरिए से देखा और प्रतिक्रियाएं दीं। लेकिन इस पूरे माहौल में बसपा प्रमुख मायावती का बयान अलग नजर आया। उन्होंने न सिर्फ इस हमले की निंदा की, बल्कि सभी राजनीतिक दलों को एकजुट रहने की सलाह दी।
इस लेख में हम पहलगाम आतंकी हमले से लेकर राजनीतिक प्रतिक्रिया, जनता के आक्रोश, और पाकिस्तान पर कार्रवाई की मांग तक के हर पहलू को विस्तार से समझेंगे।
1. पहलगाम आतंकी हमले का ब्योरा
22 अप्रैल की शाम को जम्मू-कश्मीर के पहलगाम क्षेत्र में अचानक गोलियों की आवाज़ गूंज उठी। आतंकियों ने सुनियोजित तरीके से एक बस को निशाना बनाया, जिसमें पर्यटक सवार थे। पहले तो यह लगा कि कोई सामान्य सुरक्षा चूक है, लेकिन जैसे-जैसे जानकारी सामने आई, यह स्पष्ट हो गया कि यह एक सोची-समझी आतंकवादी साजिश थी।
हमलावरों ने पहले बस को रोका, यात्रियों को नीचे उतारा और फिर एक-एक करके उनका धर्म पूछना शुरू किया। कुछ लोगों को कलमा पढ़ने को कहा गया, और जिनसे वे असहमत थे, उन्हें मार दिया गया। कुछ को उनके कपड़े उतरवाकर उनके धर्म की पुष्टि की गई। यह हमला किसी सैन्य ठिकाने पर नहीं, बल्कि आम नागरिकों पर था—और वह भी धर्म के आधार पर टारगेट किया गया था।
इस हमले में 26 लोग मारे गए, जिनमें अधिकांश हिंदू पर्यटक थे। यह घटना न केवल भयावह थी, बल्कि धार्मिक असहिष्णुता की चरम सीमा को दर्शाती थी।
पीड़ित कौन थे? आतंकियों का मकसद क्या था?
हमले के शिकार अधिकतर लोग उत्तर भारत से आए पर्यटक थे, जो छुट्टियां मनाने के लिए पहलगाम पहुंचे थे। उनमें से कई पहली बार कश्मीर आए थे और इस खूबसूरत वादियों में शांति की तलाश कर रहे थे। आतंकियों का मकसद स्पष्ट था—धार्मिक आधार पर लोगों को निशाना बनाना और देश में सांप्रदायिक तनाव पैदा करना।
इस तरह के हमले पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद की याद दिलाते हैं, जहां न केवल सुरक्षा बलों को, बल्कि आम नागरिकों को भी टारगेट किया जाता है। यह हमला पूरी दुनिया को यह दिखाने की कोशिश थी कि भारत अभी भी असुरक्षित है और आतंकवाद को जड़ से खत्म करने की दिशा में अभी बहुत काम बाकी है।
2. देशभर में गुस्से की लहर
पहलगाम हमले की खबर सामने आते ही सोशल मीडिया पर गुस्से की सुनामी आ गई। ट्विटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम—हर जगह लोग सरकार से सवाल पूछते नजर आए। #PahalgamAttack, #JusticeForVictims जैसे हैशटैग ट्रेंड करने लगे। लोगों ने वीडियो, पोस्ट और मैसेज के ज़रिए अपना गुस्सा ज़ाहिर किया।
सिर्फ सोशल मीडिया ही नहीं, कई शहरों में लोग सड़कों पर उतर आए। दिल्ली, मुंबई, लखनऊ और अहमदाबाद जैसे शहरों में कैंडल मार्च और विरोध प्रदर्शन हुए। हर नागरिक का यही सवाल था—"कब तक हम आतंकवाद का शिकार बनते रहेंगे?"
लोगों की सरकार से क्या अपेक्षाएं हैं?
जनता अब केवल बयानबाज़ी से संतुष्ट नहीं है। लोग ठोस कदम चाहते हैं। लोग चाहते हैं कि अब पाकिस्तान को उसी की भाषा में जवाब दिया जाए। यह पहली बार नहीं है जब आतंकवाद ने भारत को लहूलुहान किया है, लेकिन अब जनता की सहनशीलता जवाब दे रही है।
देशभर में एक स्वर में यह मांग उठ रही है कि या तो आतंकियों के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक की जाए या फिर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर पाकिस्तान को पूरी तरह अलग-थलग किया जाए। सरकार से यह अपेक्षा है कि वह सिर्फ संवेदना व्यक्त करने तक सीमित न रहे, बल्कि एक मजबूत और निर्णायक नीति अपनाए।
3. मायावती का बयान: राजनीतिक दलों को आईना
बसपा प्रमुख मायावती ने इस संवेदनशील मुद्दे पर बहुत ही संतुलित और सटीक बयान दिया। उन्होंने सभी राजनीतिक दलों से अपील की कि सरकार के हर कदम पर साथ खड़े रहें। उन्होंने कहा कि इस वक्त देश को एकजुटता की जरूरत है, न कि बयानबाज़ी और सस्ती राजनीति की।
मायावती का यह बयान उन राजनीतिक दलों के लिए एक सीधा संदेश था जो इस हमले के बहाने राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे थे। उन्होंने साफ तौर पर कहा कि इस तरह की हरकतें जनता के बीच भ्रम फैलाती हैं और यह देशहित में बिल्कुल नहीं है।
सस्ती राजनीति से देश को हो सकता है नुकसान
मायावती का यह कहना पूरी तरह सही था कि इस समय किसी भी तरह की राजनीति से बचना चाहिए। जब पूरा देश शोक और गुस्से में है, तब राजनीतिक दलों द्वारा बयानबाज़ी और पोस्टरबाजी करना बेहद गैर-जिम्मेदाराना रवैया है।
उन्होंने सभी दलों को यह याद दिलाया कि आतंकवाद कोई राजनीतिक मुद्दा नहीं है, यह एक राष्ट्रीय संकट है। और ऐसे वक्त में अगर दल एकजुट नहीं होंगे, तो न केवल सरकार की स्थिति कमजोर होगी, बल्कि जनता का विश्वास भी डगमगाएगा।
4. सपा और कांग्रेस को मिली चेतावनी
लखनऊ में एक होर्डिंग विवाद का कारण बन गया, जिसमें समाजवादी पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव की तस्वीर को डॉ. भीमराव अंबेडकर के चेहरे के साथ जोड़ दिया गया। इस पर मायावती ने सपा और कांग्रेस को चेतावनी दी कि बाबा साहेब का अपमान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा।
यह आरोप लगाते हुए मायावती ने कहा कि संविधान निर्माता बाबा साहेब के नाम और चेहरे का राजनीतिक लाभ उठाना गलत है और इससे उनकी विचारधारा का अपमान होता है।
बीएसपी की सख्त चेतावनी और सड़क पर उतरने की धमकी
मायावती ने यह भी कहा कि यदि ऐसी घटनाएं दोबारा हुईं तो बसपा सड़कों पर उतरकर विरोध करेगी। यह बयान इस बात का संकेत था कि बीएसपी अब अपने कोर वैल्यूज और विचारधारा से कोई समझौता नहीं करेगी।
उन्होंने सपा और कांग्रेस को विशेष रूप से चेतावनी दी कि वह राजनीतिक स्टंट करने के लिए अंबेडकर जैसे महापुरुषों का उपयोग न करें। इससे न केवल राजनीतिक मर्यादा टूटती है, बल्कि बाबा साहेब की शिक्षाओं का भी अपमान होता है।
5. पाकिस्तान पर कार्रवाई की मांग
देश की जनता अब बयानबाज़ी से थक चुकी है। हर बार आतंकी हमले के बाद "कड़ी निंदा" और "शहीदों को श्रद्धांजलि" जैसे बयान आते हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर कुछ नहीं बदलता। अब जनता ठोस एक्शन चाहती है।
आतंकी हमले के बाद पूरे देश में यह मांग तेज़ हो गई है कि पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय मंच पर बेनकाब किया जाए और कूटनीतिक स्तर पर दबाव बढ़ाया जाए।
Brijendra
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