दिल्ली हाई कोर्ट: 'भगवान शिव को किसी की सुरक्षा की जरूरत नहीं' दिल्ली उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी यमुना नदी के जल में डूबे क्षेत्र में अवैध रूप से निर्मित मंदिर को हटाने से संबंधित एक याचिका में भगवान शिव को पक्षकार बनाने से इनकार करते हुए की है।
भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की जरूरत नहीं है; बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा चाहते हैं: दिल्ली उच्च न्यायालय
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दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि यमुना नदी के निचले इलाकों और बाढ़ के मैदानों को सभी अतिक्रमणों और अनधिकृत निर्माणों से मुक्त कर दिया जाए तो भगवान शिव अधिक प्रसन्न होंगे। अदालत ने बाढ़ क्षेत्र के पास गीता कॉलोनी में स्थित एक प्राचीन शिव मंदिर को ध्वस्त करने के आदेश को रद्द करने से इनकार करते हुए यह टिप्पणी की।
जस्टिस धर्मेश शर्मा ने क्या कहा?
न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा ने कहा, “याचिकाकर्ता के वकील ने तर्क दिया कि मंदिर के देवता होने के नाते भगवान शिव को भी मामले में एक पक्ष बनाया जाना चाहिए। यह उनके सदस्यों द्वारा अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए पूरे विवाद को एक अलग रंग देने का एक हताश प्रयास है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा, ''भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की जरूरत नहीं है. लेकिन हम उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि अगर यमुना के निचले इलाकों और बाढ़ के मैदानों को सभी अतिक्रमणों और अनधिकृत निर्माणों से मुक्त कर दिया जाए तो भगवान शिव अधिक प्रसन्न होंगे।
याचिकाकर्ता का दावा
याचिकाकर्ता ने दावा किया कि मंदिर आध्यात्मिक गतिविधियों का केंद्र है, जहां नियमित रूप से 300 से 400 भक्त आते हैं। याचिका में दावा किया गया कि याचिकाकर्ता सोसायटी को मंदिर की संपत्ति की पारदर्शिता, जवाबदेही और जिम्मेदार प्रबंधन बनाए रखने के उद्देश्य से 2018 में पंजीकृत किया गया था।
कोर्ट ने 15 दिन का समय दिया है
कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता सोसायटी जमीन पर अपने स्वामित्व, अधिकार या हित के संबंध में कोई भी दस्तावेज दिखाने में पूरी तरह विफल रही है और इस बात का कोई सबूत नहीं है कि मंदिर का कोई ऐतिहासिक महत्व है। कोर्ट ने कहा कि सोसायटी को मंदिर में रखी मूर्तियों और अन्य धार्मिक वस्तुओं को हटाकर किसी अन्य मंदिर में स्थानांतरित करने के लिए 15 दिन का समय दिया जाता है।
दिल्ली हाई कोर्ट ने पुलिस और प्रशासन को दिया निर्देश
अदालत ने कहा कि यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि मूर्तियों को किसी अन्य मंदिर में रखा जाए। अदालत ने कहा, “डीडीए अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने के लिए स्वतंत्र होगा और याचिकाकर्ता सोसायटी और उसके सदस्य ऐसी प्रक्रिया में कोई बाधा या रुकावट पैदा नहीं करेंगे। कानून एवं व्यवस्था बनाए रखने के लिए स्थानीय पुलिस एवं प्रशासन इस प्रक्रिया में पूरी मदद करेगा।
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Brijendra
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