img

आईक्यूवीआईए इंस्टीट्यूट फॉर ह्यूमन डेटा साइंस (डरहम, एनसी, यूएसए) के अनुसार, ऑन्कोलॉजी दवाओं पर वैश्विक खर्च 2028 तक 409 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है, जो 2023 में 223 बिलियन डॉलर से अधिक था। यह वृद्धि पिछले कुछ वर्षों में तेजी से बढ़ते कैंसर दवा बाजार को दर्शाती है।

कैंसर दवाओं के बढ़ते बाजार के प्रमुख कारण

नई और उन्नत कैंसर उपचार तकनीकों की ऊंची कीमतें समग्र लागत में महत्वपूर्ण योगदान देती हैं।

संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ और जापान जैसे विकसित देशों में कैंसर की दवाओं पर सबसे अधिक खर्च किया जाता है।

कैंसर उपचार में बुनियादी ढांचे की चुनौतियां

कैंसर एक जानलेवा बीमारी है और इसके इलाज में बुनियादी ढांचे की कमी एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की एक संसदीय कमेटी की रिपोर्ट के अनुसार:

रेडिएशन थेरेपी की सुविधा केवल 20% मरीजों को ही मिल पाती है।

WHO के मानकों के अनुसार, हर 10 लाख की आबादी पर एक रेडियोथेरेपी मशीन होनी चाहिए।

इस हिसाब से भारत में करीब 1,300 रेडियोथेरेपी मशीनों की जरूरत है, लेकिन फिलहाल केवल 700 मशीनें उपलब्ध हैं।

देश में सरकारी और प्राइवेट मिलाकर लगभग 250 अस्पतालों में ही रेडियोथेरेपी उपलब्ध है, जिनमें से 200 निजी अस्पताल हैं, जहां इलाज की लागत काफी अधिक होती है।

कैंसर के इलाज की लागत

कैंसर विभिन्न प्रकार के होते हैं और हर प्रकार के लिए उपचार लागत भिन्न हो सकती है। रिपोर्ट के अनुसार:

कैंसर के इलाज की औसत लागत ₹2,80,000 से ₹10,50,000 तक हो सकती है, जो कैंसर की स्टेज और स्थान पर निर्भर करता है।

रोबोटिक सर्जरी का खर्च करीब ₹5.25 लाख आता है।

भारत में कीमोथेरेपी कराने की लागत प्रति सत्र लगभग ₹18,000 होती है, जो कैंसर की गंभीरता पर निर्भर करती है।

कैंसर की दवाओं और उपचार की बढ़ती लागत को देखते हुए, स्वास्थ्य प्रणाली में सुधार और अधिक किफायती इलाज उपलब्ध कराना बेहद आवश्यक है।


Read More: विटामिन C की कमी के लक्षण और इलाज: जानिए थकान, कमजोरी और स्कर्वी से कैसे करें बचाव"