US President Donald Trump : डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन ने अमेरिका की आव्रजन नीतियों में एक बड़ा और विवादास्पद बदलाव करते हुए क्यूबा, हैती, निकारागुआ और वेनेजुएला के करीब 5.3 लाख प्रवासियों की कानूनी सुरक्षा को खत्म कर दिया है। इस फैसले से इन देशों से आए प्रवासियों पर अमेरिका छोड़ने का दबाव बन गया है, और उन्हें आने वाले कुछ ही हफ्तों में देश से बाहर जाना पड़ सकता है।
मानवीय पैरोल प्रणाली पर लगी लगाम
ट्रम्प प्रशासन ने यह कदम मानवता आधारित पैरोल प्रणाली के खिलाफ उठाया है, जो उन लोगों के लिए बनाई गई थी जिन्हें उनके देशों में युद्ध, राजनीतिक अस्थिरता या मानवीय संकट का सामना करना पड़ रहा था। यह प्रणाली उन्हें अस्थायी रूप से अमेरिका में रहने और काम करने की अनुमति देती थी।
जो बिडेन प्रशासन ने इस मानवीय पैरोल को वर्ष 2022 में वेनेजुएला से शुरू कर क्यूबा, हैती और निकारागुआ तक विस्तारित किया था। लेकिन अब ट्रम्प प्रशासन ने इसे दुरुपयोग की संज्ञा दी है और इसे रद्द कर दिया है। परिणामस्वरूप, इन प्रवासियों को दी गई दो साल की कानूनी अनुमति की समयसीमा समाप्त हो गई है, और 24 अप्रैल के बाद उन्हें देश छोड़ना होगा।
कठोर आव्रजन नीति का संकेत
ट्रम्प प्रशासन का यह फैसला दर्शाता है कि अवैध आप्रवासन को लेकर उनका रवैया पहले से भी अधिक सख्त हो गया है। यह स्पष्ट कर दिया गया है कि अमेरिका अब उन प्रवासियों को शरण नहीं देगा, जिनके पास वैध कानूनी दर्जा नहीं है—even अगर वे मानवीय संकट से बचकर आए हों।
ट्रम्प सरकार का मानना है कि बिडेन प्रशासन ने पैरोल नीति के जरिए आव्रजन कानूनों की सीमाओं को पार किया। इसी आधार पर जनवरी 2025 में एक कार्यकारी आदेश के जरिए इसे समाप्त कर दिया गया।
प्रवासियों का भविष्य संकट में
यह फैसला अमेरिका में रह रहे हजारों परिवारों के लिए गंभीर संकट लेकर आया है। उन लोगों के लिए जो अमेरिका में नया जीवन शुरू करने की कोशिश कर रहे थे, अब उनका भविष्य अनिश्चित हो गया है। इनमें कई लोग ऐसे हैं जो अपने देश लौटने से डरते हैं, क्योंकि वहां उन्हें हिंसा, गरीबी या राजनीतिक उत्पीड़न का सामना करना पड़ सकता है।
राजनीतिक बहस और मानवीय चिंता
इस निर्णय ने अमेरिका में आव्रजन नीति पर चल रही राजनीतिक बहस को फिर से तेज कर दिया है। जहां एक ओर ट्रम्प समर्थक इस कदम को कानून और व्यवस्था की दिशा में एक सख्त निर्णय मानते हैं, वहीं मानवाधिकार संगठनों और डेमोक्रेट्स की ओर से इसकी तीखी आलोचना की जा रही है। उनका कहना है कि इस तरह के फैसले से अमेरिका की 'मानवीय' पहचान कमजोर होती है।
अब आगे क्या?
यह स्पष्ट नहीं है कि इन प्रवासियों को देश छोड़ने से पहले वैकल्पिक रास्ते दिए जाएंगे या नहीं। क्या उन्हें अस्थायी राहत दी जाएगी? या क्या उन्हें निर्वासन के आदेश का तुरंत पालन करना होगा? ये सवाल अब अमेरिका की अदालतों और राजनीतिक गलियारों में चर्चा का विषय बन चुके हैं।
इस निर्णय का प्रभाव सिर्फ अमेरिका पर ही नहीं, बल्कि उन चार देशों—क्यूबा, हैती, निकारागुआ और वेनेजुएला—पर भी पड़ेगा, जहां इन प्रवासियों को अब वापस लौटना होगा। यह निर्णय उन देशों की अर्थव्यवस्था, सामाजिक स्थिति और सुरक्षा पर भी गंभीर असर डाल सकता है।
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Brijendra
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