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जब बात मधुमेह की होती है, तो अक्सर लोग इसे केवल "ब्लड शुगर" की बीमारी मानते हैं। लेकिन हकीकत ये है कि डायबिटीज आपके शरीर के कई अंगों को प्रभावित कर सकती है – खासकर आंखों को। अगर समय रहते ध्यान न दिया जाए, तो यह आंखों की रोशनी तक छीन सकती है।

डायबिटीज का आंखों पर असर

मधुमेह के कारण शरीर में ब्लड शुगर का स्तर बढ़ जाता है। इससे कई तरह की समस्याएं होती हैं – जैसे अत्यधिक भूख और प्यास लगना, बार-बार पेशाब आना, थकान महसूस होना और मूड स्विंग्स होना। अगर ये स्थिति लंबे समय तक बनी रहे, तो यह दिल, किडनी, नसों और आंखों को भी प्रभावित कर सकती है।

आंखों की बात करें तो, डायबिटीज के कारण दृष्टि कमजोर, धुंधली नजर, और यहां तक कि अंधापन भी हो सकता है।

डायबिटीज से होने वाले मुख्य नेत्र रोग:

डायबिटिक रेटिनोपैथी

यह स्थिति तब होती है जब रेटिना की छोटी रक्त नलिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। इससे धीरे-धीरे नजर कमजोर होने लगती है।

गंभीर मामलों में आंखों में ब्लीडिंग भी हो सकती है, जिससे ऑक्सीजन की सप्लाई कम हो जाती है।

डायबिटिक मैक्युलर इडिमा (DME)

रेटिना के बीच के हिस्से (मैक्युला) में सूजन आ जाती है, जिससे चीजें धुंधली नजर आने लगती हैं।

मोतियाबिंद (Cataract)

मधुमेह वाले लोगों को मोतियाबिंद होने का खतरा ज्यादा होता है। इसमें आंख का लेंस धुंधला हो जाता है।

ग्लूकोमा (काला पानी)

डायबिटीज से ग्लूकोमा होने की आशंका बढ़ जाती है, जिससे ऑप्टिक नर्व को नुकसान पहुंचता है और स्थायी रूप से रोशनी जा सकती है।

एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2020 में लगभग 10 करोड़ लोगों को डायबिटिक रेटिनोपैथी थी, और 2045 तक यह संख्या 16 करोड़ तक पहुंचने का अनुमान है।

डायबिटीज से आंखों में आने वाले लक्षण:

धुंधली या अस्थिर दृष्टि

रात को देखने में परेशानी

आंखों के सामने काले या तैरते हुए धब्बे

तेज रोशनी से चुभन

बार-बार चश्मा या लेंस बदलवाने की जरूरत

रंग फीके लगना

आंखों में दर्द या दबाव (ग्लूकोमा का संकेत हो सकता है)

आंखों की जांच कब और कितनी बार करानी चाहिए?

टाइप 1 डायबिटीज:

डायग्नोस होने के 5 साल बाद और फिर हर साल आंखों की जांच कराएं।

टाइप 2 डायबिटीज:

डायग्नोस होते ही आंखों की जांच जरूरी है और उसके बाद हर साल जांच करानी चाहिए।

गर्भवती महिलाएं जो डायबिटिक हैं:

गर्भावस्था से पहले, गर्भावस्था के दौरान और डिलीवरी के बाद आंखों की जांच ज़रूर कराएं।

कुछ गंभीर मामलों में, डॉक्टर हर 2 से 4 महीने में आंखों की जांच की सलाह भी देते हैं।


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