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Bihar Elections 2025: बिहार में इस साल विधानसभा चुनाव होने हैं, और इसके पहले एक नया सर्वे जारी हुआ है, जो राज्य के मौजूदा राजनीतिक माहौल को लेकर कुछ महत्वपूर्ण संकेत देता है। इस सर्वेक्षण के आंकड़े स्पष्ट रूप से दिखाते हैं कि राज्य की सरकार को लेकर लोगों के मन में असंतोष बढ़ रहा है और बदलाव की मांग जोर पकड़ रही है। तो, आइए हम जानते हैं इस सर्वेक्षण से जुड़ी कुछ अहम बातें और बिहार के आगामी चुनाव को लेकर जनता की राय।

1. जनता का सरकार के प्रति असंतोष: बदलाव की बढ़ती मांग

इस साल जारी हुए सी-वाटर के नए सर्वे में बिहार की राजनीतिक स्थिति को लेकर कुछ चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। इस सर्वेक्षण के अनुसार, लगभग 50 प्रतिशत लोग राज्य सरकार से नाखुश हैं और बदलाव की मांग कर रहे हैं। वहीं, 22 प्रतिशत लोग सरकार से असंतुष्ट तो हैं, लेकिन बदलाव के पक्ष में नहीं हैं। केवल 25 प्रतिशत लोगों ने यह स्पष्ट रूप से कहा है कि न तो वे सरकार से नाराज हैं और न ही बदलाव की आवश्यकता महसूस करते हैं।

यह आंकड़ा यह दिखाता है कि बिहार की राजनीतिक स्थिरता को लेकर जनता में एक बड़ा भ्रम और असंतोष पैदा हो चुका है। ऐसे में आगामी विधानसभा चुनाव में यह बदलाव के पक्ष में बढ़ती हुई लहर को लेकर एक स्पष्ट संकेत हो सकता है।

2. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लोकप्रियता में गिरावट: जनता की पसंद बदल रही है

सर्वेक्षण के आंकड़े यह भी बताते हैं कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की लोकप्रियता में काफी गिरावट आई है। 41 प्रतिशत लोग अब तेजस्वी यादव को अगले मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं, जबकि केवल 18 प्रतिशत लोग ही नीतीश कुमार को दोबारा मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं।

यह आंकड़ा बिहार की बदलती राजनीति का संकेत है, जहां युवा नेता तेजस्वी यादव की लोकप्रियता में लगातार इजाफा हो रहा है। इसके अलावा, 15 प्रतिशत लोगों ने प्रशांत किशोर को मुख्यमंत्री पद के लिए चुना, जबकि 8 प्रतिशत लोग बीजेपी के सम्राट चौधरी को और 4 प्रतिशत लोग चिराग पासवान को मुख्यमंत्री के रूप में देखना चाहते हैं।

इससे यह साफ है कि नीतीश कुमार के प्रति जनता की राय अब पहले जैसी नहीं रही और ऐसे में चुनाव परिणामों पर इसका असर पड़ सकता है।

3. बिहार में चुनावी मुद्दे: बेरोजगारी और मुद्रास्फीति प्रमुख मुद्दे

जब बात बिहार के चुनावी मुद्दों की आती है, तो इस बार बेरोजगारी सबसे बड़ा मुद्दा बनकर उभरा है। इस सर्वे में 45 प्रतिशत लोगों ने इसे अपनी प्राथमिकता बताया है। बेरोजगारी के बढ़ते स्तर के कारण राज्य के युवाओं में खासा असंतोष देखा जा रहा है, जो चुनावों में एक बड़ा फैक्टर साबित हो सकता है।

इसके बाद, मुद्रास्फीति को 11 प्रतिशत लोगों ने सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा माना, जबकि बिजली, पानी और सड़कें 10 प्रतिशत लोगों के लिए प्रमुख मुद्दे रहे। हालांकि, कृषि और भ्रष्टाचार से जुड़े मुद्दों पर सिर्फ 4 प्रतिशत लोगों ने वोट देने की बात की।

बेरोजगारी और मुद्रास्फीति जैसे मुद्दों के कारण जनता की नाराजगी का स्तर बढ़ता जा रहा है, जो चुनाव परिणामों पर एक निर्णायक प्रभाव डाल सकता है।

4. एनडीए को मिल सकता है फायदा: सर्वे में नजर आ रही संभावनाएं

राजनीतिक समीक्षकों के अनुसार, बिहार विधानसभा चुनाव में महागठबंधन और एनडीए के बीच कांटे की टक्कर हो सकती है। पिछले विधानसभा चुनाव में राजद 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी, जबकि भाजपा ने 74 और जदयू ने 43 सीटें जीती थीं।

लेकिन इस बार के सर्वेक्षण के परिणामों के अनुसार, महागठबंधन को केवल 5 से 7 सीटें ही मिलने का अनुमान है। वहीं, एनडीए को 33 से 35 सीटें मिलने की संभावना जताई जा रही है, जिससे यह संकेत मिलता है कि एनडीए के प्रदर्शन में इस बार सुधार हो सकता है।

ऐसा लगता है कि जनता में एक बार फिर से एनडीए की तरफ रुझान बढ़ रहा है, खासकर जब सरकार के प्रति असंतोष और बदलाव की मांग अधिक हो रही है।

5. नीतीश कुमार का जन्मदिन और पार्टी की तैयारी

आज यानी 1 मार्च को बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का जन्मदिन है। हालांकि, नीतीश कुमार खुद अपना जन्मदिन मनाने से बचते हैं, लेकिन उनके पार्टी कार्यकर्ता इस दिन को लेकर काफी उत्साहित रहते हैं। हर साल पार्टी कार्यकर्ता इस दिन के मौके पर केक काटकर और अन्य कार्यक्रमों के जरिए उनका जन्मदिन मनाते हैं।

नीतीश कुमार के जन्मदिन पर पार्टी कार्यकर्ताओं का उत्साह यह दर्शाता है कि वह पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण नेता हैं, हालांकि उनकी लोकप्रियता में आई गिरावट के बाद यह देखना होगा कि आगामी चुनावों में उनकी पार्टी के लिए यह उत्साह कितना लाभकारी साबित होता है।


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