जलवायु परिवर्तन का असर खेतों पर भी देखने को मिल रहा है. जिन क्षेत्रों में भूजल कभी 100 फीट या उससे कम स्तर पर उपलब्ध था, वहां आज लोगों को कई फीट गहराई तक बोरिंग करनी पड़ती है। इसके अलावा इसका असर खेती पर भी पड़ रहा है. जमीन की गुणवत्ता पहले से कम है.
कई रिपोर्टों के अनुसार, जलवायु परिवर्तन से संबंधित चुनौतियाँ जैसे अनियमित वर्षा, बढ़ता तापमान, पानी की कमी और समुद्र का बढ़ता स्तर भारत में कृषि उत्पादन को प्रभावित कर रहे हैं। ये चुनौतियाँ फसलों को नुकसान पहुँचाती हैं, पैदावार कम करती हैं और नई बीमारियों और कीटों को जन्म देती हैं। इसके अलावा, पानी की कमी से सिंचाई मुश्किल हो रही है और तटीय क्षेत्रों में बढ़ती लवणता से कृषि योग्य भूमि कम हो रही है।
इसका प्रभाव क्या है?
किसानों को कम पैदावार और आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ रहा है। अनियमित मौसम और चरम मौसम की घटनाओं से किसानों को भारी आर्थिक नुकसान हो रहा है। जैसे-जैसे भविष्य के बारे में अनिश्चितता बढ़ती है, किसानों के लिए योजना बनाना मुश्किल हो जाता है।
उपज में कमी देखी गई है
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन के कारण कृषि क्षेत्र में मिट्टी का कटाव, फसल चक्र में व्यवधान और कीट नियंत्रण चुनौतियां हैं। फसल चक्र और अंतरफसल जैसे पारंपरिक तरीकों का उपयोग इन चुनौतियों से निपटने में मदद कर सकता है। जलवायु परिवर्तन से फसल उत्पादन कम हो जाता है और पोषक तत्वों की कमी भी हो जाती है। सरकारी अनुमान के मुताबिक, बिना कार्रवाई के 2050 तक चावल की उत्पादकता 20% और गेहूं की उत्पादकता 19.3% तक गिर सकती है। मक्के के उत्पादन में भी 18% की गिरावट का अनुमान है।
इस स्थिति से बचने के लिए पौधे लगाना जरूरी है
कृषि विशेषज्ञ डॉ. आकांक्षा सिंह ने कहा कि पेड़ों की कटाई से तापमान बढ़ रहा है। इसके अलावा इसका असर खेतों पर भी पड़ रहा है. वनों की कटाई के कारण कई गैसें हैं जो ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ा रही हैं। जिसके कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं. इन समस्याओं से बचने के लिए जरूरी है कि ज्यादा से ज्यादा पेड़-पौधे लगाए जाएं। इससे खेत स्वस्थ रहेंगे और लू जैसी समस्याएं भी कम होंगी।
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