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पापों का नाश करने वाली योगिनी एकादशी 2 जुलाई 2024 को है। यह व्रत सभी दुखों और दोषों से मुक्त कर भौतिक सुख प्रदान करता है। एकादशी के दिन पवित्र भावना से भगवान विष्णु के स्वरूप की धूप, दीप, नेवैद्य, पुष्प और फलों से पूजा करनी चाहिए।योगिनी एकादशी व्रत के महात्म्य के कारण साधक को राजयोग जैसा सुख प्राप्त होता है, इसके अलावा इस व्रत से 88 हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने का फल मिलता है। आइए जानते हैं योगिनी एकादशी व्रत की कथा.पौराणिक कथा के अनुसार, कुबेर नाम का एक राजा, जो शिव का उपासक था, अलकापुरी नामक स्वर्गीय शहर में रहता था। हाम नाम का एक माली प्रतिदिन पूजा के लिए फूल लाया करता था। एक दिन हेम अपनी पत्नी विशालाक्षी को मानसरोवर में स्नान करते देख कामातुर हो गया और उसका आनंद लेने लगा, जिससे माली को फूल लाने में देर हो गई। कारण जानकर राजा बहुत क्रोधित हुए और उसे श्राप दे दिया।क्रोधित राजा कुबेर ने हेम माली से कहा कि तुमने अपनी वासना के कारण भगवान शिव का अपमान किया है। मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम अपनी पत्नी से वियोग में पड़ जाओगे और मृत्युलोक (पृथ्वी) में जाकर कुष्ठ रोग से पीड़ित हो जाओगे। कुबेर के शाप से हेम माली स्वर्ग से उतरकर उसी क्षण पृथ्वी पर गिर पड़ा। धरती पर आते ही उसे कुष्ठ रोग हो गया।काफी समय तक उसे कष्ट सहना पड़ा, लेकिन एक दिन वह मार्कण्डेय ऋषि के आश्रम में पहुंच गया। उसे देखकर मार्कण्डेय ऋषि बोले तुमने ऐसा कौन सा पाप किया है जिसके कारण तुम्हारी यह दुर्दशा हुई है? हेम माली ने उन्हें सारी बात बतायी। उनकी दुर्दशा सुनकर ऋषि ने उन्हें योगिनी एकादशी का व्रत करने को कहा। हेम माली ने विधिपूर्वक योगिनी एकादशी का व्रत किया. इस व्रत से हाम कुष्ठ रोग से मुक्त होकर अपने पुराने स्वरूप में लौट यहां दी गई जानकारी केवल मान्यताओं और सूचनाओं पर आधारित है। यहां यह बताना जरूरी है कि ABPLive.com किसी भी जानकारी का समर्थन या पुष्टि नहीं करता है। किसी भी जानकारी या मान्यता पर अमल करने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें।आया और अपनी पत्नी के साथ सुखपूर्वक जीवन व्यतीत करने लगा। इस व्रत को करने से मनुष्य इस लोक और परलोक दोनों से पार हो जाता है।


 


 

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