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Next Mahakumbh Mela Date After 2025: महाकुंभ मेला, जो हर 144 वर्षों में एक बार आयोजित होता है, भारतीय संस्कृति और धार्मिक परंपरा का सबसे भव्य आयोजन माना जाता है। 2025 में प्रयागराज में हो रहा यह महाकुंभ 144 साल के लंबे अंतराल के बाद आया है, जो इसे विशेष रूप से महत्वपूर्ण बनाता है। इसके पहले 1881 में महाकुंभ का आयोजन हुआ था। यह आयोजन केवल प्रयागराज में होता है और इसे भारतीय आध्यात्मिकता का सबसे बड़ा पर्व कहा जाता है। आइए, इस पवित्र आयोजन के महत्व और अगली महाकुंभ की तारीख के बारे में विस्तार से जानते हैं।

महाकुंभ मेला: भारतीय परंपरा का अनुपम आयोजन

महाकुंभ मेला हर 144 वर्षों में एक बार आयोजित किया जाता है। यह 12 पूर्ण कुंभ मेलों के बाद आता है, जो इसे अत्यधिक धार्मिक और आध्यात्मिक महत्व देता है।

चार प्रकार के कुंभ मेले:

कुंभ मेला: हर 3 साल में एक बार होता है।

अर्धकुंभ: हर 6 साल में आयोजित किया जाता है।

पूर्ण कुंभ: 12 साल में एक बार होता है।

महाकुंभ: हर 144 साल में केवल प्रयागराज में आयोजित किया जाता है।

पवित्र स्थान: महाकुंभ का आयोजन भारत के चार प्रमुख धार्मिक स्थलों—प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन—में होता है। लेकिन महाकुंभ केवल प्रयागराज में आयोजित किया जाता है।

2025 के महाकुंभ का महत्व

2025 में आयोजित हो रहा यह महाकुंभ कई दृष्टिकोणों से ऐतिहासिक और पवित्र है।

तारीखें: महाकुंभ मेला 13 जनवरी 2025 को शुरू हुआ और 26 फरवरी 2025 को महाशिवरात्रि के दिन समाप्त होगा।

धार्मिक महत्व: माना जाता है कि इस दौरान संगम के पवित्र जल में डुबकी लगाने से पापों का नाश होता है और व्यक्ति मोक्ष की प्राप्ति करता है।

विशेष शाही स्नान: महाकुंभ में स्नान को ‘शाही स्नान’ कहा जाता है। यह धार्मिक अनुष्ठान का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा होता है।

अगला महाकुंभ मेला कब होगा?

जानकारी के अनुसार, अगला महाकुंभ मेला साल 2169 में प्रयागराज में आयोजित किया जाएगा। चूंकि महाकुंभ 144 साल के अंतराल पर होता है, इसलिए यह आयोजन अत्यंत दुर्लभ और पवित्र माना जाता है।

कुंभ, अर्धकुंभ और पूर्णकुंभ का आयोजन

महाकुंभ के बाद भी कुंभ से जुड़े आयोजनों की परंपरा जारी रहेगी। इसके तहत कुंभ, अर्धकुंभ और पूर्णकुंभ का आयोजन निम्न प्रकार होगा:

2027: नासिक में कुंभ मेला।

2028: उज्जैन में सिंहस्थ महाकुंभ।

2030: प्रयागराज में अर्धकुंभ।

2033: हरिद्वार में पूर्णकुंभ।

कुंभ मेले का पौराणिक महत्व

कुंभ मेले का इतिहास समुद्र मंथन की पौराणिक कथा से जुड़ा है।

अमृत की बूंदें: पौराणिक मान्यता के अनुसार, देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत प्राप्ति के लिए 12 वर्षों तक युद्ध चला। इस दौरान, अमृत कलश से जहां-जहां अमृत की बूंदें गिरीं, वहां कुंभ मेले का आयोजन होता है।

12 साल का चक्र: 12 वर्षों के इस संघर्ष के कारण कुंभ मेले का आयोजन हर 12 साल में एक बार होता है।

मोक्ष की प्राप्ति: माना जाता है कि कुंभ मेले में पवित्र स्नान करने से पापों से मुक्ति मिलती है और व्यक्ति मोक्ष प्राप्त करता है।

महाकुंभ का धार्मिक महत्व

महाकुंभ में स्नान को सर्वोच्च धार्मिक अनुष्ठान माना गया है। इसे शाही स्नान के नाम से जाना जाता है।

पापों का नाश: संगम के पवित्र जल में स्नान करने से व्यक्ति के सभी पाप समाप्त हो जाते हैं।

आध्यात्मिक शुद्धि: यह आयोजन आत्मा को शुद्ध करने और धार्मिक परंपराओं को जीवित रखने का एक अवसर प्रदान करता है।

धार्मिक एकता का प्रतीक: महाकुंभ भारत के धार्मिक और सांस्कृतिक एकता का सबसे बड़ा प्रतीक है।

महाकुंभ में शामिल होने का महत्व

महाकुंभ न केवल एक धार्मिक आयोजन है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है।

विश्व का सबसे बड़ा धार्मिक उत्सव: लाखों श्रद्धालु और साधु-संत यहां शामिल होते हैं।

आध्यात्मिक ऊर्जा का अनुभव: यह आयोजन एक ऐसा स्थान प्रदान करता है, जहां व्यक्ति अपनी आध्यात्मिक यात्रा को नई ऊंचाई पर ले जा सकता है।

विश्वव्यापी आकर्षण: महाकुंभ मेला न केवल भारत, बल्कि पूरी दुनिया के लोगों को आकर्षित करता है।