अखाड़े हिंदू धर्म की रक्षा के लिए परंपरागत रूप से गठित संतों की सेना हैं। प्राचीन काल में सनातन धर्म, धार्मिक स्थलों, ग्रंथों, संस्कृति और परंपराओं की रक्षा के लिए संत-महात्माओं ने इन अखाड़ों का गठन किया था।
आदि शंकराचार्य (778-820 ई.) के समय देशभर में चार शंकर मठ और दसनामी संप्रदाय की स्थापना हुई। कालांतर में इन्हीं दसनामी संन्यासियों के बीच विभिन्न अखाड़ों का उदय हुआ। आज भी सात प्रमुख पंचायती अखाड़े अपनी लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत कार्यरत हैं और धर्म की रक्षा में संलग्न हैं।
अखाड़ों की सेना लगातार हो रही है बड़ी
सनातन धर्म की रक्षा के लिए अपना जीवन समर्पित करने वाले संन्यासियों की संख्या बढ़ती जा रही है।
मंगलवार की आधी रात को 8,495 नए नागा साधु अखाड़ों में शामिल हुए।
इनमें 2,300 महिलाएं भी शामिल थीं, जिन्हें अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर ने दीक्षा दी।
दीक्षा के दौरान गायत्री मंत्र और अवधूत मंत्र का उच्चारण कराया गया, जिससे वे अखाड़ों की परंपरा और नियमों से परिचित हो सकें।
अब यह नागा सेना नियमित रूप से इन मंत्रों का जाप करेगी और अपनी तपस्या में संलग्न रहेगी।
अखाड़ों में कितने नागा संन्यासी?
विभिन्न अखाड़ों में नागा संन्यासियों की संख्या इस प्रकार है:
अखाड़ा | भिक्षु (पुरुष) | भिक्षुणियाँ (महिला) |
---|---|---|
पुराना अखाड़ा | 4,500 | 2,150 |
निरंजनी अखाड़ा | 1,100 | 150 |
महानिर्वाणी अखाड़ा | 250 | - |
अटल अखाड़ा | 85 | - |
आवाहन अखाड़ा | 150 | - |
एक बड़ा उदास मैदान | 10 तांग टोडा (नागा हर्मिट) | - |
इस बार दीक्षा प्राप्त करने वाले साधुओं में महिलाओं की भागीदारी बढ़ी है, जो यह दर्शाता है कि अखाड़ों में स्त्रियों की भी सक्रिय भूमिका हो रही है।
कुंभ और महाकुंभ में क्यों बनते हैं नागा संन्यासी?
कुंभ और महाकुंभ के दौरान हजारों साधु-संत और श्रद्धालु इकट्ठा होते हैं। यह समय नए नागा संन्यासियों को दीक्षा देने के लिए आदर्श माना जाता है।
नागा संन्यास बनने की प्रक्रिया:
मकर संक्रांति के बाद नागा संन्यास की प्रक्रिया शुरू होती है और यह कुंभ महोत्सव के दौरान जारी रहती है।
संन्यास ग्रहण करने वालों को 108 बार पवित्र स्नान कराया जाता है।
संन्यासी बनने के इच्छुक साधकों को मंत्र जाप और पिंडदान कराया जाता है।
संन्यास की दीक्षा लेने के बाद वे अखाड़े के शिविरों में रहते हैं और कठोर तपस्या व पूजा-पाठ में लीन रहते हैं।
नागा संन्यास की परंपरा और अवधूत बनने की प्रक्रिया
जो लोग अवधूत (पूर्ण संन्यासी) बनना चाहते हैं, उन्हें 3 से 6 वर्षों तक अखाड़े के नियमों का पालन करना पड़ता है।
इस अवधि में वे अध्यात्म, योग और साधना में लीन रहते हैं।
इस कठिन प्रक्रिया को पास करने पर उन्हें "दिगंबर" (निर्वस्त्र संन्यासी) की उपाधि दी जाती है।
दिगंबर बनने के बाद वे अखाड़ों के विभिन्न अंगों का हिस्सा बन जाते हैं और पूरी तरह से सांसारिक मोह-माया से मुक्त हो जाते हैं।
संगम में नागा संन्यासियों का विशेष स्नान
कुंभ महापर्व के दौरान नागा संन्यासी त्रिवेणी संगम में विशेष स्नान करते हैं, जिसे "अमृत स्नान" कहा जाता है।
इस दौरान लाखों श्रद्धालु संगम में स्नान कर पुण्य अर्जित करते हैं।
नागा साधु पूरी तरह निर्वस्त्र होकर गंगा में डुबकी लगाते हैं, क्योंकि यह उनकी पूर्ण वैराग्य अवस्था को दर्शाता है।