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Rupee hits all-time low : भारतीय रुपया इतिहास में पहली बार 87 के पार चला गया है। डॉलर के मुकाबले रुपया 87.12 पर पहुंच गया, जो अब तक का सबसे कमजोर स्तर है। करेंसी मार्केट के खुलते ही रुपया 42 पैसे गिरकर 87.06 पर खुला और कारोबार शुरू होने के 10 मिनट के अंदर ही 55 पैसे और गिरकर 87.12 रुपये प्रति डॉलर पर पहुंच गया। रुपये की यह गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था पर कई तरह के प्रभाव डाल सकती है, जिसमें आयातित वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि, महंगाई में बढ़ोतरी और विदेशी निवेश पर असर शामिल है।

रुपये की गिरावट से अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव

1. आयातित वस्तुएं महंगी होंगी

रुपये के कमजोर होने का सीधा असर आयातित वस्तुओं पर पड़ेगा। भारत कई आवश्यक चीजों के लिए आयात पर निर्भर है, जिनमें खाद्य तेल, दालें, कच्चा तेल, मशीनरी और इलेक्ट्रॉनिक्स शामिल हैं। जब रुपये की कीमत घटती है, तो आयात महंगा हो जाता है, जिससे इन वस्तुओं की कीमतें भी बढ़ जाती हैं।

2. पेट्रोल-डीजल की कीमतों में वृद्धि

भारत कच्चे तेल का सबसे बड़ा आयातक है। रुपये के कमजोर होने से कच्चे तेल का आयात महंगा हो जाएगा, जिससे पेट्रोल और डीजल की कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है। इससे परिवहन लागत भी बढ़ेगी, जिसका सीधा असर सब्जियों, फलों और अन्य आवश्यक वस्तुओं पर पड़ेगा।

3. इलेक्ट्रॉनिक्स और पूंजीगत सामान महंगे होंगे

मोबाइल फोन, लैपटॉप, टीवी, ऑटोमोबाइल और मशीनरी जैसे उत्पादों के लिए भारत बड़ी मात्रा में कच्चा माल और पार्ट्स विदेशों से मंगाता है। रुपये की गिरावट से इन वस्तुओं की कीमतें बढ़ सकती हैं, जिससे उपभोक्ताओं को अधिक भुगतान करना होगा।

4. दवाइयां भी महंगी हो सकती हैं

भारत में इस्तेमाल होने वाली कई जरूरी दवाइयां और मेडिकल इक्विपमेंट विदेशों से आयात किए जाते हैं। रुपये की गिरावट से दवाओं की कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है, जिससे आम लोगों पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा।

5. मुद्रास्फीति पर असर

रुपये के कमजोर होने से आयातित सामानों की लागत बढ़ जाती है, जिससे महंगाई (Inflation) पर दबाव बढ़ता है। जब पेट्रोल, डीजल, खाद्य उत्पाद और अन्य वस्तुएं महंगी होंगी, तो इससे आम आदमी की जेब पर असर पड़ेगा और खर्च बढ़ सकता है।

रुपये की गिरावट के पीछे प्रमुख कारण

विशेषज्ञों का मानना है कि भारतीय रुपये में इस गिरावट के पीछे कई वैश्विक और घरेलू कारण हैं।

अमेरिकी टैरिफ और डॉलर की मजबूती

  • अमेरिका द्वारा लगाए गए टैरिफ और व्यापार प्रतिबंधों के कारण वैश्विक बाजार में डॉलर की मांग बढ़ी है, जिससे रुपये पर दबाव पड़ा है।
  • डॉलर के मजबूत होने से अन्य मुद्राएं कमजोर हुई हैं, जिसमें भारतीय रुपया भी शामिल है।

अमेरिका में रोजगार वृद्धि

  • अमेरिका में रोजगार के नए अवसर बढ़ने के कारण डॉलर की मांग और ज्यादा बढ़ गई है, जिससे रुपये पर दबाव पड़ा है।

कच्चे तेल की बढ़ती कीमतें

  • अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों में वृद्धि के कारण भारत का आयात बिल बढ़ गया है, जिससे रुपये की स्थिति और कमजोर हुई है।

विदेशी निवेशकों की निकासी (FII आउटफ्लो)

  • विदेशी संस्थागत निवेशकों (FII) ने भारतीय शेयर बाजार से अपना पैसा निकालकर अमेरिका और अन्य देशों में निवेश किया है।
  • इसके कारण भारतीय शेयर बाजार में अस्थिरता बढ़ी है और रुपये की कमजोरी और ज्यादा देखने को मिली है।

आगे की संभावनाएं: क्या रुपया और गिर सकता है?

आर्थिक विशेषज्ञों का कहना है कि अगर डॉलर की मजबूती जारी रहती है और कच्चे तेल की कीमतें और बढ़ती हैं, तो रुपया 88-89 के स्तर तक गिर सकता है। हालांकि, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) रुपये को स्थिर करने के लिए हस्तक्षेप कर सकता है, जिससे स्थिति कुछ हद तक सुधर सकती है।