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Lifestyle: आज के दौर में प्रजनन क्षमता पर खराब जीवनशैली और खानपान का गहरा असर पड़ रहा है। आधुनिक जीवनशैली के चलते कई पुरुष और महिलाएं बांझपन (Infertility) की समस्या से जूझ रहे हैं। लेकिन विज्ञान में हो रही तेजी से प्रगति इस समस्या का समाधान निकालने में मददगार साबित हो रही है।

ब्रिटेन के मानव निषेचन एवं भ्रूणविज्ञान प्राधिकरण (HFEA) की एक नई रिपोर्ट के अनुसार, अब लैब में ही शुक्राणु और अंडे बनाए जा सकते हैं। यह तकनीक अगले 10 वर्षों में पूर्ण रूप से विकसित हो सकती है, जिससे प्रयोगशाला में बच्चे पैदा करना संभव हो जाएगा।

क्या है इन-विट्रो गैमेटोजेनेसिस (IVG) तकनीक?

ब्रिटिश वेबसाइट द गार्जियन की रिपोर्ट के अनुसार, इस नई तकनीक को इन-विट्रो गैमेटोजेनेसिस (IVG) कहा जाता है। इसके तहत:

त्वचा की कोशिकाओं से अंडाणु बनाए जा सकते हैं।
स्टेम सेल से शुक्राणु तैयार किया जा सकता है।
इस प्रक्रिया में प्राकृतिक गर्भाधान की जरूरत नहीं होगी।

यह तकनीक उन दंपतियों, एकल माता-पिता और समलैंगिक जोड़ों के लिए भी वरदान साबित हो सकती है, जो किसी कारणवश प्राकृतिक रूप से माता-पिता नहीं बन सकते।

किसे होगा IVG तकनीक से लाभ?

बांझपन (Infertility) से जूझ रहे दंपति
उम्र बढ़ने के कारण संतान सुख से वंचित लोग
 समलैंगिक (LGBTQ+) जोड़े
वे लोग जो बुढ़ापे में माता-पिता बनना चाहते हैं

इस तकनीक के माध्यम से एकल व्यक्ति भी माता-पिता बन सकते हैं। यानी कोई व्यक्ति अपनी त्वचा की कोशिकाओं से खुद ही अंडाणु और शुक्राणु बनाकर संतान पैदा कर सकता है।

मल्टीप्लेक्स पेरेंटिंग: एक से ज्यादा माता-पिता?

इस तकनीक की एक और रोचक संभावना है मल्टीप्लेक्स पेरेंटिंग। इसमें:

दो या अधिक लोग एक साथ एक भ्रूण का निर्माण कर सकते हैं।
प्रयोगशाला में तैयार भ्रूण से नए शुक्राणु और अंडाणु बनाए जा सकते हैं।
इससे आनुवंशिक बीमारियों की संभावना भी कम हो सकती है।

हालांकि, इस तकनीक से जुड़ी नैतिक और कानूनी चिंताएं भी हैं, क्योंकि इससे प्रयोगशाला में बड़ी संख्या में भ्रूण बनाए जा सकते हैं, जो अनैतिक प्रजनन तकनीकों को बढ़ावा दे सकता है।

क्या बुढ़ापे में भी संभव होगा माता-पिता बनना?

इस तकनीक की सबसे बड़ी खासियत यह है कि बुढ़ापे में भी संतान उत्पत्ति संभव होगी। वर्तमान में, उम्र बढ़ने के साथ पुरुषों और महिलाओं की प्रजनन क्षमता कम हो जाती है, लेकिन IVG तकनीक के जरिए 90 साल की उम्र में भी माता-पिता बनना संभव हो सकता है।

IVG तकनीक के संभावित खतरे और नैतिक चिंताएं

IVG तकनीक को लेकर वैज्ञानिकों और नैतिक विशेषज्ञों ने कुछ चिंताएं भी जाहिर की हैं:

शिशु जन्म की नैसर्गिक प्रक्रिया में दखल – प्राकृतिक रूप से संतान उत्पत्ति के पारंपरिक तरीकों पर असर पड़ सकता है।

अनैतिक उपयोग का खतरा – अगर यह तकनीक बिना किसी कानून के लागू होती है, तो इसका गलत इस्तेमाल भी हो सकता है।

मानव भ्रूण का अत्यधिक उत्पादन – लैब में बड़ी संख्या में भ्रूण बनाए जा सकते हैं, जिससे नैतिक और कानूनी जटिलताएं उत्पन्न हो सकती हैं।

बायोलॉजिकल रिश्तों में बदलाव – अगर एकल व्यक्ति खुद से ही अंडाणु और शुक्राणु बनाकर संतान पैदा करता है, तो इससे रिश्तों की पारंपरिक धारणा बदल सकती है।

क्या इस तकनीक को कानूनी मान्यता मिलेगी?

ब्रिटेन का HFEA प्राधिकरण इस तकनीक पर गहराई से अध्ययन कर रहा है। उनका कहना है कि:

 IVG तकनीक पर अभी और शोध किए जाने की जरूरत है।
 यह वर्तमान में किसी भी चिकित्सा उपचार का हिस्सा नहीं है।
इसे लागू करने से पहले सख्त कानूनी और नैतिक दिशा-निर्देश बनाए जाने चाहिए।

इसके लिए ब्रिटिश संसद को कानून में बदलाव करने होंगे, ताकि इस तकनीक का गलत इस्तेमाल न हो।