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दिल्ली में 27 साल बाद भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सरकार बनाई है। अब सवाल यह उठता है कि क्या भाजपा का अगला लक्ष्य केरल और पश्चिम बंगाल होंगे? ये दोनों राज्य लंबे समय से वामपंथी और क्षेत्रीय दलों के मजबूत गढ़ रहे हैं। भाजपा अब तक यहां सरकार नहीं बना पाई है, लेकिन क्या दिल्ली की जीत से उसे इन राज्यों में भी बढ़त मिलेगी? आइए, इस पर गहराई से नजर डालते हैं।
दिल्ली में भाजपा की ऐतिहासिक जीत
दिल्ली में 1998 के बाद से कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) का शासन रहा है। भाजपा पिछले कई चुनावों में सत्ता में वापसी नहीं कर सकी थी। लेकिन 2025 में अरविंद केजरीवाल की घटती लोकप्रियता और मोदी के नेतृत्व में भाजपा की चुनावी रणनीति ने इसे जीत दिलाई।
भाजपा की इस जीत के पीछे कई कारण रहे:
- मोदी सरकार की लोकप्रियता: केंद्र सरकार की नीतियों का सीधा असर दिल्ली के मतदाताओं पर पड़ा।
- 'आप' सरकार की विफलताएं: भ्रष्टाचार के आरोप और प्रशासनिक नाकामी भाजपा के पक्ष में गई।
- चुनावी रणनीति: भाजपा ने ग्राउंड-लेवल पर मजबूत संगठन तैयार किया और मतदाताओं तक अपनी पहुंच बढ़ाई।
अब यही सवाल केरल और बंगाल को लेकर भी उठ रहा है। क्या भाजपा दिल्ली की तरह इन राज्यों में भी जीत दर्ज कर पाएगी?
केरल में भाजपा की स्थिति
केरल की राजनीति और भाजपा की चुनौती
केरल की राजनीति मुख्य रूप से वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ) और संयुक्त लोकतांत्रिक मोर्चा (यूडीएफ) के बीच रही है।
- एलडीएफ: सीपीआई(एम) के नेतृत्व में वामपंथी दलों का गठबंधन
- यूडीएफ: कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी गठबंधन
भाजपा ने यहां अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश की, लेकिन अब तक सरकार नहीं बना पाई।
भाजपा के लिए अवसर और चुनौतियां
- 2016 में भाजपा ने ओ. राजगोपाल को विधायक बनाया, लेकिन 2021 में एक भी सीट नहीं मिली।
- 2024 लोकसभा चुनाव में भी भाजपा को ज्यादा फायदा नहीं हुआ।
- ईसाई समुदाय को साधने की कोशिश: भाजपा ने हाल ही में ईसाई वोट बैंक को आकर्षित करने के प्रयास किए हैं।
- मुस्लिम वोटों में सेंध लगाने की रणनीति: अगर भाजपा इस वर्ग को भी अपनी ओर खींच पाती है, तो उसकी स्थिति मजबूत हो सकती है।
सबसे बड़ी चुनौती यह है कि भाजपा का मूल वोट बैंक केरल में अभी भी बहुत छोटा है। अगर पार्टी यहां संगठन को मजबूत कर पाई, तो वह भविष्य में सत्ता के लिए दावेदारी पेश कर सकती है।
क्या भाजपा पश्चिम बंगाल में सरकार बना पाएगी?
बंगाल की राजनीति में भाजपा की स्थिति
- 2011 से तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सत्ता में है।
- 2019 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया और 18 सीटें जीतीं।
- लेकिन 2021 विधानसभा चुनाव में भाजपा 77 सीटों पर सिमट गई, जबकि टीएमसी ने 213 सीटें जीत लीं।
भाजपा की रणनीति और चुनौतियां
- भ्रष्टाचार के मुद्दे: टीएमसी सरकार पर भ्रष्टाचार और घोटालों के आरोप भाजपा के लिए बड़ा मुद्दा बन सकते हैं।
- हिंदुत्व की राजनीति: बंगाल में एनआरसी-सीएए जैसे मुद्दे भाजपा के पक्ष में जा सकते हैं।
- टीएमसी का संगठित वोट बैंक: ममता बनर्जी की लोकप्रियता अभी भी काफी मजबूत है।
- आंतरिक कलह: अगर टीएमसी में अंदरूनी फूट बढ़ती है, तो भाजपा को इसका फायदा मिल सकता है।
बंगाल में भाजपा फिलहाल मुख्य विपक्षी पार्टी बनी हुई है, लेकिन उसे सरकार बनाने के लिए संगठन को और मजबूत करना होगा।
क्या केरल और बंगाल अब मोदी के मिशन पर हैं?
भाजपा की दीर्घकालिक रणनीति हमेशा धीरे-धीरे समर्थन बढ़ाने की रही है। दिल्ली में 27 साल बाद सरकार बनाने के बाद अब पार्टी दक्षिण और पूर्वी भारत की ओर ध्यान केंद्रित कर सकती है।
- केरल: भाजपा यहां हिंदू वोटों को संगठित करने और ईसाई-मुस्लिम वोटों को अपनी ओर लाने की कोशिश कर रही है।
- बंगाल: पार्टी ममता बनर्जी के खिलाफ मजबूत विपक्ष के रूप में उभरने का प्रयास कर रही है।
अगर भाजपा सही रणनीति अपनाती है, तो आने वाले समय में केरल और बंगाल में भी सत्ता परिवर्तन की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।
भाजपा का दिल्ली में ऐतिहासिक सफर
भाजपा ने 1993 में पहली बार दिल्ली में सरकार बनाई
दिल्ली को 1991 में पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और 1993 में पहले विधानसभा चुनाव हुए। भाजपा ने 49 सीटें जीतकर बहुमत हासिल किया और मदन लाल खुराना पहले मुख्यमंत्री बने।
1993-1998: भाजपा का शासन
- 1996: मदन लाल खुराना ने इस्तीफा दिया, साहिब सिंह वर्मा मुख्यमंत्री बने।
- 1998: प्याज की बढ़ती कीमतों और महंगाई के कारण भाजपा की लोकप्रियता घटी। सुषमा स्वराज को मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन पार्टी हार गई।
1998-2025: भाजपा की सत्ता से दूरी
- 1998-2013: कांग्रेस की शीला दीक्षित ने लगातार तीन बार (1998, 2003, 2008) सरकार बनाई।
- 2013: आम आदमी पार्टी ने सरकार बनाई।
- 2015 और 2020: केजरीवाल भारी बहुमत से जीते।
- 2025: भाजपा ने दिल्ली में 27 साल बाद वापसी की।