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Can the Supreme Court repeal the Waqf Act : इन दिनों भारत में वक्फ संशोधन विधेयक को लेकर काफी हलचल मची हुई है। केंद्र सरकार ने इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों — लोकसभा और राज्यसभा — से पारित करवा लिया है। अब यह विधेयक देश के राष्ट्रपति की मंजूरी का इंतजार कर रहा है। इस दौरान विपक्षी दलों और कुछ मुस्लिम संगठनों ने इस विधेयक के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है।

कांग्रेस समेत कई मुस्लिम संगठन इस विधेयक को संविधान विरोधी मानते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख कर रहे हैं। कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद ने इसके खिलाफ पहले ही एक रिट याचिका दायर कर दी है। अब सवाल यह उठ रहा है कि क्या सुप्रीम कोर्ट वक्फ जैसे कानून को निरस्त कर सकता है? चलिए इसे समझते हैं।

क्या सुप्रीम कोर्ट किसी कानून को रद्द कर सकता है?

भारत का सुप्रीम कोर्ट देश की सबसे बड़ी और अंतिम न्यायिक संस्था है। इसके पास यह अधिकार है कि यदि कोई कानून संविधान के मूल सिद्धांतों या नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो, तो उसे असंवैधानिक घोषित करके रद्द किया जा सकता है। लेकिन यह कोई सीधी प्रक्रिया नहीं है।

सुप्रीम कोर्ट किसी भी कानून को केवल तभी रद्द करता है जब किसी व्यक्ति, संस्था या संगठन द्वारा उसके खिलाफ एक विधिवत याचिका दायर की जाती है। फिर कोर्ट उस याचिका पर सुनवाई करता है और अगर उसे लगता है कि वाकई में वह कानून संविधान के खिलाफ है, तो उसे रद्द कर सकता है।

वक्फ कानून पर सुप्रीम कोर्ट की शक्ति: क्या यह संभव है?

बिलकुल। अगर वक्फ संशोधन विधेयक से किसी व्यक्ति या समुदाय के मौलिक अधिकारों का हनन होता है, तो सुप्रीम कोर्ट के पास पूरा अधिकार है कि वह इसे रद्द कर सके। हालांकि यह तभी संभव होगा जब याचिका की सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट यह तय कर ले कि यह कानून संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।

इस प्रक्रिया में कोर्ट यह देखेगा कि क्या यह कानून धर्म, समानता, या अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता जैसे अधिकारों का उल्लंघन करता है। यदि हां, तो इसे खारिज किया जा सकता है।

कानून रद्द करने की प्रक्रिया क्या है?

भारत का सुप्रीम कोर्ट किसी कानून को अपने आप रद्द नहीं कर सकता। इसके लिए कुछ जरूरी प्रक्रियाएं होती हैं:

सबसे पहले किसी व्यक्ति या संस्था को सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दाखिल करनी होती है।

कोर्ट उस याचिका पर सुनवाई करता है, जिसमें दोनों पक्षों की दलीलें सुनी जाती हैं।

अगर कोर्ट को लगता है कि याचिका में उठाए गए मुद्दे संविधान से टकराते हैं, तो वह कानून को रद्द करने की प्रक्रिया शुरू करता है।

अंत में यदि न्यायमूर्ति इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि कानून असंवैधानिक है, तभी उसे निरस्त किया जाता है।

ध्यान देने वाली बात यह है कि याचिका दाखिल होने के बाद भी जरूरी नहीं कि कानून को रद्द ही कर दिया जाए। यह पूरी तरह कोर्ट के फैसले पर निर्भर करता है।