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RBI Rate Cut : भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) एक बार फिर ब्याज दरों में कटौती करने की तैयारी में है। इसके संकेत आगामी मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) की बैठक से मिल सकते हैं, जो अप्रैल महीने में प्रस्तावित है। इस बैठक के नतीजे 9 अप्रैल को सामने आने की संभावना है। जहां खुदरा महंगाई में कमी आई है, वहीं देश की आर्थिक विकास दर में सुस्ती को देखते हुए ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद जताई जा रही है। यह कदम आम जनता और उद्योगों दोनों के लिए राहत लेकर आ सकता है।

महंगाई दर में गिरावट से नीति निर्धारण आसान

हाल ही में जारी आंकड़ों के अनुसार, उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित मुद्रास्फीति घटकर 3.6 प्रतिशत पर आ गई है, जो पिछले सात महीनों का सबसे निचला स्तर है। विशेष रूप से खाद्य वस्तुओं की कीमतों में कमी ने इस गिरावट में बड़ी भूमिका निभाई है। सब्जियों की कीमतें कम होने से खाद्य मुद्रास्फीति दर भी नियंत्रण में आ गई है। इस गिरावट ने रिजर्व बैंक के लिए नीति निर्धारण को थोड़ा आसान बना दिया है। अब 4 प्रतिशत का मुद्रास्फीति लक्ष्य केवल एक आदर्श नहीं, बल्कि हकीकत के करीब नजर आ रहा है।

रेपो दर में संभावित कटौती की अटकलें

मार्च महीने के अंतिम सप्ताह में रॉयटर्स द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में 60 में से 54 अर्थशास्त्रियों ने यह अनुमान लगाया कि रिजर्व बैंक 7-9 अप्रैल की एमपीसी बैठक में रेपो दर को 25 आधार अंकों की कटौती के साथ 6 प्रतिशत कर सकता है। पिछली बैठक में यह दर पहले ही 6.25 प्रतिशत पर लाई जा चुकी थी, जो बीते पांच वर्षों में पहली बार कटौती का संकेत था। अब अगली संभावित कटौती से कर्ज लेना और सस्ता हो सकता है।

भविष्य में और कटौतियों की संभावना

इंडिया रेटिंग्स एंड रिसर्च (Ind-Ra) के अनुसार, वित्त वर्ष 2026 में रेपो दर में कुल मिलाकर तीन बार कटौती हो सकती है। इन तीन कटौतियों के चलते कुल 75 आधार अंकों की कमी आ सकती है। इंड-रा के मुख्य अर्थशास्त्री डी.के. पंत का कहना है कि भविष्य की मौद्रिक नीति मुख्य रूप से मुद्रास्फीति की स्थिति, तरलता प्रबंधन और वैश्विक स्तर पर कमोडिटी कीमतों की चाल पर निर्भर करेगी। यदि अंतरराष्ट्रीय बाजार में तेल और अन्य जरूरी वस्तुओं की कीमतें स्थिर रहती हैं, तो केंद्रीय बैंक के पास दरों में कटौती का अधिक स्पेस होगा।

रेपो दर क्या होती है और इसका क्या प्रभाव पड़ता है?

रेपो दर वह ब्याज दर होती है जिस पर भारतीय रिजर्व बैंक वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक ऋण देता है। यह ऋण बैंकों को सरकारी प्रतिभूतियों को गिरवी रखकर मिलता है। जब आरबीआई रेपो दर घटाता है, तो बैंकों को मिलने वाला कर्ज सस्ता हो जाता है। इस वजह से बैंक भी अपने ग्राहकों को सस्ती दरों पर लोन देने लगते हैं। इससे बाजार में नकदी बढ़ती है और लोगों के लिए होम लोन, कार लोन और पर्सनल लोन जैसे कर्ज सस्ते हो जाते हैं।

ईएमआई का बोझ कम हो जाता है, जिससे उपभोक्ताओं को राहत मिलती है और खर्च करने की क्षमता बढ़ती है। यह खर्च अर्थव्यवस्था में मांग को बढ़ाता है और विकास को गति देता है। इसलिए रेपो दर में कटौती को आर्थिक गतिविधियों को रफ्तार देने का एक प्रभावी उपाय माना जाता है।