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West Bengal : पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने हाल ही में एक ऐसा बयान दिया है, जो राज्य की शिक्षा व्यवस्था और शिक्षकों के भविष्य को लेकर गहरी चिंता और प्रतिबद्धता दर्शाता है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा भ्रष्टाचार के आरोपों में कई शिक्षकों को बर्खास्त किए जाने के बाद उन्होंने कहा, “जब तक मैं जिंदा हूं, किसी भी योग्य शिक्षक की नौकरी नहीं जाएगी।” उनका यह बयान उस समय आया है जब राज्य में शिक्षक भर्ती प्रक्रिया को लेकर विवादों का दौर चल रहा है।

भावनात्मक रूप से आहत, फिर भी दृढ़

ममता बनर्जी ने सार्वजनिक रूप से अपनी भावनाएं जाहिर करते हुए कहा कि वह बहुत दुखी हैं और उन्हें डर है कि अगर वे सच बोलेंगी तो उन्हें सजा हो सकती है। बावजूद इसके, उन्होंने खुलकर अपनी बात रखी और कहा कि यदि कोई उन्हें चुनौती देगा, तो वह जवाब देना जानती हैं। इससे यह स्पष्ट होता है कि वह न केवल राजनीतिक रूप से बल्कि व्यक्तिगत रूप से भी इस मुद्दे को गंभीरता से ले रही हैं।

योग्य शिक्षकों के साथ मजबूती से खड़ी ममता

मुख्यमंत्री ने यह भी आश्वासन दिया कि योग्य शिक्षकों की नौकरियों की रक्षा की जाएगी और किसी को भी उनका हक छीनने की अनुमति नहीं दी जाएगी। इस बयान के जरिए उन्होंने राज्य के लाखों शिक्षकों और भावी उम्मीदवारों को एक मजबूत संदेश दिया है कि राज्य सरकार उनके साथ है।

पश्चिम बंगाल शिक्षक भर्ती घोटाला: एक झलक

पश्चिम बंगाल में शिक्षक भर्ती घोटाला एक बड़ा मुद्दा बन चुका है। यह मामला 2016 में पश्चिम बंगाल स्कूल सेवा आयोग (SSC) द्वारा आयोजित भर्ती प्रक्रिया में पाई गई गंभीर अनियमितताओं से जुड़ा है। उस समय 24,640 शिक्षकों की भर्ती के लिए परीक्षा कराई गई थी, जिसमें 23 लाख से अधिक उम्मीदवारों ने भाग लिया। लेकिन भर्ती प्रक्रिया में पारदर्शिता की भारी कमी और नियमों की अनदेखी ने पूरे राज्य में शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए।

भर्ती प्रक्रिया में गड़बड़ियां: एक विस्तृत विश्लेषण

SSC ने 2014 में भर्ती प्रक्रिया शुरू की थी, लेकिन परीक्षा 2016 में आयोजित की गई। इसके नतीजे 2017 में घोषित किए गए, लेकिन तब तक मेरिट सूची में फेरबदल, अपारदर्शिता और अनुचित नियुक्तियों की खबरें सामने आने लगीं। आयोग ने बिना किसी ठोस वजह के मेरिट लिस्ट को रद्द कर दिया। यह कदम उन उम्मीदवारों के लिए झटका था जो पूरी मेहनत और ईमानदारी से परीक्षा में सफल हुए थे।

बबीता सरकार और अंकिता अधिकारी का मामला

सिलीगुड़ी की रहने वाली बबीता सरकार का मामला विशेष रूप से इस घोटाले का प्रतीक बन गया है। वह शुरू में मेरिट सूची में 20वें स्थान पर थीं, लेकिन बाद में उन्हें प्रतीक्षा सूची में डाल दिया गया और उनकी जगह अंकिता अधिकारी को नियुक्त कर दिया गया, जिन्हें कथित रूप से कम अंक मिले थे। बबीता के अनुसार उन्होंने 77 अंक प्राप्त किए थे, जबकि अंकिता को केवल 61 अंक मिले थे। यह और भी संदिग्ध हो गया जब यह सामने आया कि अंकिता, तत्कालीन शिक्षा राज्य मंत्री परेश चंद्र अधिकारी की बेटी हैं।

न्याय की लड़ाई: हाई कोर्ट और सीबीआई की भूमिका

बबीता सरकार और अन्य उम्मीदवारों ने इस अन्याय के खिलाफ कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 2017 में कलकत्ता हाई कोर्ट ने सीबीआई को मामले की जांच करने का आदेश दिया। इसके बाद सीबीआई ने जांच शुरू की और कई चौंकाने वाले तथ्य सामने आए। कोर्ट के आदेश पर अंकिता को 2022 में बर्खास्त कर दिया गया और उनका वेतन भी वापस ले लिया गया। उनकी जगह बबीता को नियुक्त किया गया।

न्याय की पेचीदगियां: बबीता की नियुक्ति भी हुई रद्द

हालांकि, बबीता सरकार की यह नियुक्ति भी ज्यादा दिन टिक नहीं सकी। एक और उम्मीदवार अनामिका रॉय ने दावा किया कि बबीता की मेरिट सूची में भी गड़बड़ियां थीं। कोर्ट ने इस पर संज्ञान लेते हुए बबीता की नियुक्ति रद्द कर दी और उन्हें मिले वेतन और भत्ते, कुल मिलाकर 15 लाख से अधिक की राशि, सरकार को लौटाने का आदेश दिया।

शिक्षा व्यवस्था पर गहराया संकट

इस पूरे घटनाक्रम ने न केवल सरकार और भर्ती प्रक्रिया की विश्वसनीयता को प्रभावित किया है, बल्कि लाखों अभ्यर्थियों के मन में असुरक्षा और अविश्वास भी पैदा कर दिया है। जब योग्य उम्मीदवारों की जगह सिफारिश और भ्रष्टाचार से भरे नाम चुने जाते हैं, तो यह केवल एक व्यक्ति का नुकसान नहीं, बल्कि पूरे समाज की नींव को हिला देने वाली स्थिति बन जाती है।

राज्य सरकार की चुनौती और वादा

ममता बनर्जी के इस बयान से साफ है कि वह इस चुनौती का सामना करने को तैयार हैं। उन्होंने स्पष्ट किया है कि योग्य शिक्षकों के साथ अन्याय नहीं होने दिया जाएगा। उनके शब्दों में दृढ़ता और निडरता है, जो यह संकेत देती है कि राज्य सरकार अब शिक्षा व्यवस्था की सफाई की दिशा में गंभीर कदम उठाने वाली है।