img

AICC Conference : गुजरात की धरती पर लगभग 64 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद आज से कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन शुरू हो गया है। यह महज एक सम्मेलन नहीं, बल्कि कांग्रेस की राजनीतिक वापसी की रणनीति और संदेश का प्रतीक बन गया है। जिस प्रदेश ने कभी पार्टी को असाधारण ताकत दी थी, वहीं से एक बार फिर नयी ऊर्जा और प्रेरणा लेने की कोशिश की जा रही है। सरदार वल्लभभाई पटेल की स्मृति में हो रही कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक इस विचारधारा की पुनर्स्थापना का संकेत देती है।

मल्लिकार्जुन खड़गे का संबोधन: अतीत से प्रेरणा, वर्तमान के लिए दिशा

कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने बैठक की शुरुआत करते हुए महात्मा गांधी और सरदार पटेल को याद किया। उन्होंने गांधी जी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने की शताब्दी का उल्लेख करते हुए बताया कि 1924 में गांधीजी ने कर्नाटक के बेलगाम में अधिवेशन की अध्यक्षता की थी। उन्होंने कहा कि यह वर्ष कांग्रेस के लिए ऐतिहासिक और प्रेरणादायक है।

खड़गे ने यह भी बताया कि गुजरात ने कांग्रेस को उसकी 140 वर्षों की यात्रा में सबसे ज्यादा ताकत दी है। यही वह भूमि है, जहां से पार्टी को जनता से सीधा जुड़ाव मिला और राष्ट्र आंदोलन को जन-आंदोलन में बदलने की ताकत मिली।

गुजरात की धरती के महान नेता और कांग्रेस

इस ऐतिहासिक अधिवेशन में खड़गे ने विशेष रूप से उन तीन महान शख्सियतों का उल्लेख किया, जिन्होंने गुजरात की धरती से उठकर कांग्रेस और देश को नई दिशा दी — दादा भाई नौरोजी, महात्मा गांधी और सरदार पटेल। इन तीनों नेताओं ने कांग्रेस के सिद्धांतों को विश्व पटल पर मजबूती से प्रस्तुत किया।

गांधी जी ने अन्याय के खिलाफ सत्य और अहिंसा के हथियार दिए, जिनका असर आज भी देखा जा सकता है। वहीं, सरदार पटेल के नेतृत्व में बारडोली सत्याग्रह और अन्य किसान आंदोलनों ने गांव-गांव में कांग्रेस की जड़ें मजबूत कीं।

वर्तमान राजनीतिक माहौल पर तीखा प्रहार

खड़गे ने अपने भाषण में समकालीन राजनीति पर भी तीखा हमला बोला। उन्होंने आरोप लगाया कि आज देश में जानबूझकर सांप्रदायिक तनाव पैदा कर जनता को मूल मुद्दों से भटकाया जा रहा है। साथ ही उन्होंने कहा कि एक शक्तिशाली औद्योगिक और राजनीतिक गठजोड़ संसाधनों पर नियंत्रण कर लोकतंत्र को कमजोर करने की कोशिश कर रहा है।

उन्होंने ये भी कहा कि पिछले कुछ वर्षों में एक सुनियोजित प्रयास के तहत कांग्रेस के नेताओं, विशेष रूप से स्वतंत्रता संग्राम में योगदान देने वाले नायकों की छवि धूमिल करने की कोशिश की गई है।

सरदार पटेल और नेहरू के संबंधों की वास्तविकता

खड़गे ने विशेष जोर देते हुए कहा कि सरदार पटेल और पंडित नेहरू के बीच मतभेदों की जो कथाएं फैलाई जाती हैं, वे एक साजिश का हिस्सा हैं। उन्होंने स्पष्ट किया कि दोनों नेता एक ही उद्देश्य के लिए काम करते थे और उनमें गहरी मित्रता और परस्पर सम्मान था।

उन्होंने 1937 में सरदार पटेल के भाषण का हवाला दिया जिसमें उन्होंने नेहरू जी के प्रति प्रेम और सम्मान व्यक्त किया था। साथ ही उन्होंने 1949 में पटेल द्वारा नेहरू को भेजे गए बधाई संदेश का जिक्र किया जिसमें उन्होंने नेहरू के प्रयासों की प्रशंसा की थी और उनकी थकावट के लिए चिंता व्यक्त की थी।

नेहरू और पटेल का सहयोग: ऐतिहासिक दस्तावेजों में दर्ज

खड़गे ने कहा कि इन दोनों नेताओं के बीच रोज़ाना पत्र व्यवहार होता था। नेहरू हर महत्वपूर्ण विषय पर सरदार पटेल से सलाह लेते थे और जब भी आवश्यकता होती, तो स्वयं उनके घर जाकर चर्चा करते थे। यहां तक कि सीडब्ल्यूसी की बैठकें भी पटेल के आवास पर आयोजित होती थीं।

सरदार पटेल और आरएसएस: वैचारिक टकराव

खड़गे ने यह भी कहा कि सरदार पटेल की विचारधारा और आरएसएस की सोच एक-दूसरे के विपरीत थी। उन्होंने 1948 में आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया था। उन्होंने तंज कसा कि आज वही संगठन सरदार पटेल की विरासत पर दावा करता है, जो उनके मूल विचारों से बिल्कुल अलग था।

गांधी, पटेल और अंबेडकर की साझी भूमिका

गांधीजी और पटेल ने बाबा साहेब अंबेडकर को संविधान सभा में शामिल कराने में अहम भूमिका निभाई थी। इस ऐतिहासिक सच्चाई को खुद अंबेडकर ने 25 नवंबर 1949 को संविधान सभा में दिए गए अपने अंतिम भाषण में स्वीकार किया था। उन्होंने कहा था कि कांग्रेस का समर्थन न होता, तो संविधान संभव नहीं था।


Read More: DGCA's big decision: पहलगाम आतंकी हमले के बाद पर्यटकों को मिलेगी राहत